Tera sadka karne mai aata hun
Malala Yousafzai I dedicate this poem to her... |
Tera Sadka Karne mai aata hun...
Zulfon mein teri sar jhukane mai aata hun...
Teri innaayatoin ki chadar mein...
Mai ibaadat Karne aata hun...
Dhadak ti hai jab dhadkane mai tadapne lag jaata hun...
Be-chaini be-chaini si hoti hai mai chalte chalte hi rukh jaata hun...
Tere ghar taraf jaati galliyon mein...
Tera deedar karne mai aata hun...
Zamaane mein rakha kya hai tujhme samaana chahta hun...
Aise inkaar na kar yun rok na muze tarasta hun tere liye duaaein karna chahta hun...
Teri Jannat Jaisi baahon mein...
Kalma mohabbat ka padhne mai aata hun...
...Avim...
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तेरा सदका करने मैं आता हूँ...
ज़ुल्फ़ों में तेरी सर झुकाने मैं आता हूँ...
तेरी इनायतों की चादर में...
मैं इबादत करने आता हूँ...
धड़क ती है जब धड़कने मैं तड़प ने लग जाता हूँ...
बे-चैनी बे-चैनी सी होती है मैं चलते चलते ही रुक जाता हूँ...
तेरे घर तरफ जाती गलियों में...
तेरा दीदार करने मैं आता हूँ...
ज़माने में रखा क्या है तुझमे समाना चाहता हूँ...
ऐसे इनकार ना कर यूँ रोक ना मुझे तरसता हूँ तेरे लिए दुआंए करना चाहता हूँ...
तेरी जन्नत जैसी बाहों में...
कलमा मोहब्बत का पढ़ने मैं आता हूँ...
...अविम...
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