Teri baahon ke bina
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dil ke armaan liye mere aansu kehte hai...
takleef hoti hai yaha aankhon mein rehne ko...
behna bhi inhe manjoor nahi teri baahon ke bina...
koi sambhal lo mere dil ko bikhar chuka hai aansuo ki tarah...
tujhse hai raabta iss qalab ka aise ke jiya n jaaye teri baahon ke bina...
khud mein sharikh mujhe tu hone kyu nahi deti...
yeh dard hai mera jo kam hota nahi teri baahon ke bina...
meri siskiyo ka sitam yeh tuze samjhau kaise...
yeh bhi kuch bayaan kar nahi paati teri baahon ke bina...
ek Mohammed mai bhi hun...Avim hun mai mard-e-mujahid khud ko samajhata hun...
kaise samjhau tujhe yeh samaa mera...
manjoor-e-khuda ki mujhe jannat bhi naseeb nahi
....अविम....💝
ज़िद्दी है आंसू मेरे इन्हे समझाऊ कैसे...
दिल के अरमान लिए मेरे आंसू कहते है...
तकलीफ होती है यहाँ आँखों में रहने को...
बहना भी इन्हे मंजूर नहीं तेरी बाहों के बिना...
कोई संभाल लो मेरे दिल को बिखर चूका है आंसुओ की तरह...
तुझसे है राब्ता इस क़लब का ऐसे के जिया न जाए तेरी बाहों के बिना...
खुद में शरीख मुझे तू होने क्यों नहीं देती...
ये दर्द है मेरा जो कम होता नहीं तेरी बाहों के बिना...
मेरी सिसकियों का सितम ये तुझे समझाऊ कैसे...
ये भी कुछ बयाँ कर नहीं पाती तेरी बाहों के बिना...
एक मोहब्बत ही तो मांगी थी मैंने...
दो जिस्म एक जान की चाहत थी मेरी...
एक मोहम्मद मैं भी हूँ...अविम हूँ मैं मर्द-ए-मुजाहिद खुद को समझता हूँ...
कैसे समझाऊ तुझे ये समा मेरा...
मंजूर-ए-खुदा की मुझे जन्नत भी नसीब नहीं...
तेरी बाहों के बिना...
Avim
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