Teri baahon ke bina - hindi kavita

Teri baahon ke bina

Image made by bing creator 

ziddi  hai  aansu  mere  inhe  samjhau  kaise...

dil  ke  armaan  liye  mere  aansu  kehte  hai...

takleef  hoti  hai  yaha  aankhon  mein  rehne  ko...

behna  bhi  inhe  manjoor  nahi  teri  baahon  ke  bina...

koi  sambhal  lo  mere  dil  ko  bikhar  chuka  hai  aansuo  ki  tarah...

tujhse  hai  raabta  iss  qalab  ka  aise  ke  jiya  n  jaaye  teri  baahon  ke  bina...

khud  mein  sharikh  mujhe  tu  hone  kyu  nahi  deti...

yeh  dard  hai  mera  jo  kam  hota  nahi  teri  baahon  ke  bina... 

meri  siskiyo  ka  sitam  yeh  tuze  samjhau  kaise...

yeh  bhi  kuch  bayaan  kar  nahi  paati  teri  baahon  ke  bina...

ek  mohabbat  hi  toh  mangi  thi  maine...
do  jism  ek  jaan  ki  chahat  thi  meri...

ek  Mohammed  mai  bhi  hun...Avim  hun  mai  mard-e-mujahid  khud  ko  samajhata  hun...

kaise  samjhau  tujhe  yeh  samaa  mera...

manjoor-e-khuda  ki  mujhe  jannat  bhi  naseeb  nahi

teri  baahon  ke  bina...


....अविम....💝


ज़िद्दी  है  आंसू  मेरे  इन्हे  समझाऊ  कैसे...

दिल  के  अरमान  लिए  मेरे  आंसू  कहते  है...

तकलीफ  होती  है  यहाँ  आँखों  में  रहने  को...

बहना  भी  इन्हे  मंजूर  नहीं  तेरी  बाहों  के  बिना...

कोई  संभाल  लो  मेरे  दिल  को  बिखर  चूका  है  आंसुओ  की  तरह...

तुझसे  है  राब्ता  इस  क़लब  का  ऐसे  के  जिया  न  जाए  तेरी  बाहों  के  बिना...

खुद  में  शरीख  मुझे  तू  होने  क्यों  नहीं  देती...

ये  दर्द  है  मेरा  जो  कम  होता  नहीं  तेरी  बाहों  के  बिना... 

मेरी  सिसकियों  का  सितम  ये  तुझे  समझाऊ  कैसे...

ये  भी  कुछ  बयाँ  कर  नहीं  पाती  तेरी  बाहों  के  बिना...

एक  मोहब्बत  ही  तो  मांगी  थी  मैंने...

दो  जिस्म  एक  जान  की  चाहत  थी  मेरी...

एक  मोहम्मद मैं भी  हूँ...अविम  हूँ  मैं  मर्द-ए-मुजाहिद  खुद  को  समझता  हूँ...

कैसे  समझाऊ  तुझे  ये  समा  मेरा...

मंजूर-ए-खुदा  की  मुझे  जन्नत  भी  नसीब  नहीं...

तेरी  बाहों  के  बिना...

Avim

Post a Comment

0 Comments